उजाला योजना: गांव से लेकर बड़े शहरों तक, योजना हो तो ऐसी
"प्रकाश है तो अंधकार अपने आप दूर हो जायेगा"
इसी उद्देश्य के साथ देश में साल 2015 में उजाला योजना की शुरूआत की गई थी। यह योजना देश की तत्काल प्रभावी योजनाओं में से एक है। जानकारी के लिए बता दें कि इस योजना के तहत देश में अब तक देश में 36,74,41,809 एलईडी बल्ब वितरित किये जा चुके हैं। ऊर्जा दक्षता सेवा लिमिटेड (EESL) नामक कंपनी को उजाला योजना के क्रियान्यवन का भार सौंपा गया है। इस योजना से प्रतिवर्ष 19,087 रुपए की बचत हो रही है। इसके अलावा पर्यावरण के लिहाज से ये योजना खासा महत्वपूर्ण है। इसके इस्तेमाल से देश में प्रतिवर्ष 38 मिलियन टन कार्बन उत्सर्जन कम हो रहा है।
इस योजना मदद से प्रतिवर्ष 47000 किलोवाट बिजली बचाई गई, जिसके कारण आज देश के अधिकांश राज्यों में (खासतौर से ग्रामीण इलाकों में) 24/7 बिजली मिल रही है। इस योजना ने न केवल लोगों की क्वालिटी ऑफ लाइफ को सुधारा है, बल्कि बेहतर वर्तमान और भविष्य के लिये पर्यावरण को भी स्वच्छ रखने का काम किया है।
शानदार हैं आंकड़ा
26 जून तक प्राप्त आंकड़ों के अनुसार देशभर में कुल 36,74,41,809 करोड़ एलईडी बल्ब वितरित किये जा चुके हैं। शीर्ष पांच राज्यों की बात करें तो इस सूची में उड़ीसा में सर्वाधिक (5,22,70,570), गुजरात में (4,14,37,544), उत्तर प्रदेश में (2,62,62,460), कर्नाटक में (2,41,60,652) और आंध्र प्रदेश में (2,20,39,295) एलईडी बल्ब वितरित किये जा चुके हैं।
राज्यवार करोड़ों रुपए की बचत
26 जून तक प्राप्त आंकड़ों के अनुसार उड़ीसा में (2,715 करोड़), गुजरात में (2,153 करोड़), उत्तर प्रदेश में (1,364 करोड़), कर्नाटक में (1,255 करोड़) और आंध्र प्रदेश में (1,145 करोड़), राजस्थान में (890 करोड़) रुपए वार्षिक रूप से बचत हुई है।
पूर्वोत्तर भी जगमगाया, बचत भी हुई
1) इस योजना का लाभ दक्षिण से लेकर उत्तर तक और पश्चिम से लेकर पूर्वोत्तर तक, सभी लोगों को मिला है। पूर्वोत्तर के राज्यों की बात करें तो मिजोरम में 64,725 टन कार्बन उत्सर्जन कम हुआ है। इसके अलावा राज्य में सालाना 32 करोड़ रुपए की भी बचत हुई है। मिजोरम में अब तक कुल 6,15,298 एलईडी बांटी जा चुकी हैं। असम के आंकड़ों की बात करें तो यहां 7,55,087 टन सालाना कार्बन उत्सर्जन कम हुआ है। इसके अलावा राज्य में सालाना 373 करोड़ रुपए की भी बचत हुई है। असम में अब तक कुल 71,78,165 एलईडी बांटी जा चुकी हैं।
2) मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश के आंकड़ों की बात करें तो यहां भी इस योजना का नागरिकों ने भरपूर लाभ लिया है। मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश में क्रमशः (31,551 टन सालाना) और (52,543 टन सालाना) कार्बन उत्सर्जन कम हुआ है। इसके अलावा इन राज्यों में अब तक क्रमशः (2,99,934) और (4,99,498) एलईडी बल्ब बांटें जा चुके हैं।
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केंद्रशासित प्रदेशों में भी उजाला
केंद्रशासित प्रदेशों की बात करें तो दिल्ली में 14,01,054 (टन सालाना) कार्बन उत्सर्जन कम हुआ है। इसके अलावा यहां कुल 692 करोड़ रुपए की भी सालाना बचत हुई है। जानकारी के लिए बता दें कि अब तक यहां 1,33,18,979 एलईडी वितरित किये जा चुके हैं। लद्दाख की बात करें तो यहां 24,260 टन कार्बन उत्सर्जन में कमी और 12 करोड़ रुपए सालाना की बचत हुई है। अब तक यहां 2,30,630 एलईडी वितरित किये जा चुके हैं। इसके अलावा जम्मू-कश्मीर में 8,92,723 कार्बन उत्सर्जन में कमी और 441 करोड़ रुपए सालाना की बचत हुई है। यहां अब तक 84,86,579 एलईडी वितरित किये जा चुके हैं।
आसान नहीं थी राह
जब उजाला योजना पर काम शुरू हुआ था तो इससे जुड़े लोग सफलता को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त नहीं थे। भारत में एलईडी रेवलूशन की राह इतनी आसान भी नहीं थी, क्योंकि इस योजना की जब शुरुआत हुई थी तो एलईडी बल्ब की कीमत सामान्य बल्ब से तकरीबन 30-35 गुना ज्यादा थी। साल 2014 से पहले देश में एलईडी बल्ब खरीदने के लिए 300 रुपये से भी ज्यादा खर्च करने पड़ते थे, जबकि सामान्य बल्ब की कीमत बमुश्किल 10 से 12 रुपये थी। ज्यादा दाम इसकी कामयाबी में बड़ी रुकावट थी। इसकी वजह थी कि उस वक्त एलईडी बल्बों का उत्पादन लाखों के बजाय हजारों में होता था। इससे लागत ज्यादा आती थी।
इस समस्या से निबटने का इकलौता तरीका था ज्यादा से ज्यादा एलईडी बल्ब का प्रॉडक्शन ताकि इनकी कीमत कम हो सके। ऐसे में ऊर्जा मंत्रालय के तहत एनटीपीसी, पावर फाइनैंस कॉरपोरेशन जैसे पीएसयूज़ ने मिलकर EESL का गठन किया ताकि एलईडी रेवलूशन को अंजाम तक पहुंचाया जा सके।
कीमतें हुईं कम, लोगों में बढ़ी दिलचस्पी
एलईडी की कीमतें जब बाजार में कम होने लगीं तो धीरे-धीरे लोगों ने इसमें दिलचस्पी लेना शुरू कर दिया। लोग एक-दूसरे को एलईडी बल्ब के फायदे बताने लगे। सारी कोशिशों के बाद इसकी कीमतें करीब 88 फीसदी तक कम हो गईं। इसके बाद देखते-देखते घरों के इतर स्ट्रीट लाइट और दूसरी जगहों पर भी बड़ी संख्या में एलईडी बल्ब लगने लगे। इसके बाद जब लोगों के बिल कम आने लगे, तो लोगों ने स्वयं ही इस योजना का प्रचार प्रसार करना शुरू कर दिया। इस मिशन को कामयाब बनाने में पूर्व ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल ने काफी मेहनत की थी।
और फिर मेहनत रंग लाई
पहली बार देश में एलईडी रेवलूशन के लिए जो सूत्र तैयार किया गया, उसका पहला प्रयोग पुदुचेरी में किया गया। वर्ष 2014 में सिर्फ 6 महीने के अंदर 7 वाट के 60 लाख एलईडी बल्ब बेचे गए। उसी साल के आखिर में आंध्र प्रदेश से 60 लाख बल्ब की मांग उठी। इस मांग का नतीजा यह रहा कि 2014 खत्म होते होते एक एलईडी बल्ब की कीमत 310 रुपये से घटकर 149 रुपये हो गई।
इसके बाद वर्ष 2015 में दिल्ली से करीब 1.60 करोड़ एलईडी बल्बों की डिमांड आई, जिसके बाद एलईडी की कीमत घटकर 82 रुपये पर पहुंच गई। जल्द ही 5 करोड़ नए बल्ब के ऑर्डर मिले, तो बल्ब की कीमत 70 रुपये पर आ गई।
राज्य सरकारों को यकीन दिलाना थी बड़ी चुनौती
वर्ष 2019 में ईईएसएल के मैनेजिंग डायरेक्टर सौरव कुमार ने एक इंटरव्यू में कहा था, 'शुरूआत में चुनौती एलईडी बल्ब बेचने की नहीं थी, बल्कि राज्य सरकारों और लोगों को विश्वास दिलाने की थी कि यह उनके लिए फायदे का सौदा है। दरअसल, जब एलईडी को मार्केट में उतारा गया था तो लोग कीमत सुनकर ही मन बदल लेते थे और इसकी खासियतों के बारे में जानना भी नहीं चाहते थे। इसी तरह तमाम राज्य सरकार को यह यकीन दिलाना कि अगर वे एलईडी रेवलूशन को प्रमोट करेंगे तो पैसा बचाने के साथ ही पावर डिमांड और पलूशन में भी कमी आएगी, भी कम चुनौतीपूर्ण नहीं था।'
ऐसे हो रही है बचत
पहले 100 वॉट का एक बल्ब 10 घंटे तक इस्तेमाल करने पर एक यूनिट बिजली की खपत करता था। अब 9 वॉट का एक एलईडी बल्ब 111 घंटे तक इस्तेमाल करने पर एक यूनिट बिजली की खपत करता है। इससे साफ है कि यह कितनी बिजली बचाता है।
क्या है उजाला योजना
उजाला योजना, भारत सरकार की एक योजना है जिसके अन्तर्गत कम मूल्य पर एलईडी बल्ब दिये जाते हैं, ताकि बिजली की बचत की जा सके। यह योजना 'बचत लैम्प योजना' के स्थान पर 01 मई, 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुरू की थी। इस योजना के अन्तर्गत एक वर्ष के अन्दर ही 9 करोड़ एलईडी बल्बों की बिक्री हुई, जिससे लगभग 550 करोड रूपये के बिजली बिल की बचत हुई।
ऐसे मिलेगा फायदा
देश का कोई भी नागरिक जिसने बिजली का कनेक्शन लिया हुआ है, उजाला योजना के तहत सस्ते एलईडी खरीद का फायदा उठा सकता है। ये बल्ब ईएमआई पर भी खरीद जा सकते हैं। देश का लोअर इनकम ग्रूप इस वजह से इसका फायदा उठा पाया है।
खरीदने के लिए ग्राहक को बिजली का बिल और सरकारी पहचान-पत्र देना होगा और अगर एक बार में भुगतान करके खरीदना चाहते हैं तो सरकारी पहचान-पत्र ही काफी है।
देश के ज्यादातर शहरों में इसके वितरण केंद्र हैं। यह रिटेल स्टोर पर नहीं मिलता। वितरण केंद्रों की पूरी जानकारी पर उपलब्ध है। खास बात यह है कि अगर एलईडी बल्ब खराब हो गया हो, लेकिन वह टूटा न हो तो तीन साल के अंदर ईईएसएल इसे मुफ्त में बदल देती है।