पन्नामांजी ने करवाया था महामाया देवी के मंदिर का निर्माण, 14 देवी की मूर्तियां है महामाया, देशभर से आते है श्रद्धालु
Mahamaya Devi
वेदप्रकाश शर्मा। नवलगढ़
नवलगढ़ में स्थित महामाया मंदिर 300 वर्ष पुराना मंदिर है। गाय-भैस का प्रसव होने के बाद पहला दूध महामाया मंदिर में चढ़ाया जाता है। इस मंदिर में पूरे देश से श्रद्धालु धोक लगाने के लिए आते है। यह मंदिर सिद्ध देवीपीठ के रूप में भी माना जाता है। इसका निर्माण काल संवत 1836 बताया जाता है। मंदिर के मंहत सांवर देवाचार्य ने बताया कि सर्वप्रथम निरंजनी संप्रदाय के सिद्ध संत जीवणदासजी की शिष्या पन्नादेवी नाम की तपस्विनी ने यहां आकर एक पेड़ के नीचे अपना आसन लगाया। यह भूमि उन्हें सिद्ध स्थान अनुभव हुआ, यहीं पर पन्नामांजी ने मंदिर स्थापित करने का निर्णय लिया। ठा.नवलसिंह ने 11 बीघा भूमि का ताम्रपत्र दिया। इसके बाद पन्नामांजी ने महामाया देवी के मंदिर का निर्माण करवाया। 14 देवी की मूर्तियां महामाया है।
ठा. नवलसिंह ने क्या दिए थे आदेश
ठा. नवलसिंह पन्नामांजी के चमत्कारों से विशेष प्रभावित हुए, उन्होंने आदेश प्रसारित करवाए कि मेरे राज्य क्षेत्र में सभी जाति व समुदाय के लोग बच्चा जन्मने पर, शादी होने पर गठजोड़े की जात देंगे और बच्चे का मुंडन संस्कार करवाएंगे। आस-पास इलाके के लोग आज भी यह परम्परा निभा रहे है। एक प्रचलित कथा के अनुसार शाहपुरा के राजघराने के राव राजा की बहिन रामसुखा देवी थीं। उस काल में पन्नामांजी शाहपुरा पधारीं।
रामसुखा पन्नामांजी से प्रभावित होकर उनसे दीक्षा लेनी चाही, लेकिन उस काल में किसी राजघराने की सन्यासिनी बनना तो दूर की बात घर से निकलना भी संभव नहीं था। पन्नामांजी वापस नवलगढ़ आ गई, लेकिन रामसुखादेवी पागल हो गई। उसे पन्नामांजी के सामने नवलगढ़ लाया गया, जहां पर वा ठीक हो गई। उसे शाहपुरा वापस लेकर गए तो वह वापस पागल हो गई। इसके बाद पन्नामांजी ने राजा से कहा कि यह मेरे पास ही ठीक रहेगी, इसके रामसुखादेवी पन्नामांजी की शिष्या बन गईं। रामसुखा भी महामाया की उपासिका थीं।
पन्नामांजी मां भगवती देवी की उपासिका थीं
पन्नामांजी ने अपने जीवनकाल में हजारों लोगों के कष्ट निवारण किए। पन्ना मांजी मां देवी भगवती की उपासिक थीं व तंत्र-मंत्र की प्रकाण्ड विद्वान् थीं। उन्होंने ब्रह्माण्ड में व्याप्त योगिनी देवियों की सिद्धि प्राप्त कर लोगों के कष्ट निवारण में अपूर्व योगदान किया। पन्ना मांजी की प्रसिद्धि का अनुमान इस बात से लगता है कि आज भी देश के कोने-कोने से लाखों श्रद्धालु प्रति वर्ष नवलगढ़ आकर बच्चों के जात- जडूले उतारते हैं तथा जात देकर अपने को धन्य समझते हैं। बांझ स्त्रियां आज भी आकर पुत्र प्राप्ति की प्रार्थना करती है। पन्ना मांजी के बारे में महन्त सांवरदास व मनुदास ने बताया कि वे सिद्ध तपस्विनी थीं तथा आज भी उनका आशीर्वाद मन्दिर के सेवकों को परोक्ष व अपरोक्ष रूप से मिलता रहता है। वे आज भी अपने आश्रम में विचरण करती हैं तथा मन्दिर परिवार पर आने वाले श्रद्धालुओं के कष्टों का सहजता से निवारण करती है।