लम्पी के लिए प्रशासन अलर्ट मोड पर, जिला कलक्टर लक्ष्मण सिंह कुड़ी ने किया गौशालाओं का निरीक्षण

लम्पी के लिए प्रशासन अलर्ट मोड पर, जिला कलक्टर लक्ष्मण सिंह कुड़ी ने किया गौशालाओं का निरीक्षण
जंगल में आवारा पशुओं को भी संभाला जिला कलक्टर ने
अब तक 56 हजार से अधिक पशुओं का किया जा चुका है सर्वे
झुंझुनूं।
जिला प्रशासन पशुओं में होने वाले लम्पी रोग के लिए बेहद सावचेत और सतर्क नजर आ रहा है। रविवार को अवकाश का दिन होने के बावजूद जिला कलक्टर लक्ष्मण सिंह कुड़ी ने जिले में विभिन्न गौशालाओं का निरीक्षण किया और हालातों की जानकारी ली। जिला कलक्टर कुड़ी के सुपरविजन और पशुपालन विभाग के संयुक्त निदेशक डॉ. रामेश्वर सिंह के निर्देशन में पूरे जिले में पशुपालन विभाग व्यापक स्तर पर हालात को नियंत्रण में किए हुए है। गौरतलब है कि जिले में लम्पी बीमारी के कुछके मामले सामने आए हैं, जिसके बाद प्रशासन ने नियंत्रण कक्ष भी स्थापित किया है साथ ही अन्य उपाय भी ऐहतिहात के तौर पर किए जा रहे हैं। गौरतलब है कि जिले में पशुपालन विभाग द्वारा 56,596 पशुओं का सर्वे किया जा चुका है। वहीं बीमार पाए गए 977 पशुओं में से 121 पशु स्वस्थ हो चुके हैं। शेष उपचाराधीन है। 
जिला कलक्टर लक्ष्मण सिंह कुड़ी ने रविवार को सबसे पहले झुंझुनूं शहर में बगड़ रोड़ स्थित नंदीशाला का निरीक्षण किया। यहां लम्पी का एक भी मामला नहीं होने और नंदीशाला की व्यवस्थाओं पर उन्होंने खुशी जाहिर की। इस मौके पर नंदीशाला को अनुदान नहीं मिलने की बात सामने आने पर उन्होंने तुरंत झुंझुनूं एसडीएम और नगर परिषद आयुक्त शैलेष खैरवा को अनुदान दिलवाने के निर्देश दूरभाष पर दिए।  इसके बाद उन्होंने गोपाल गौशाला का भी दौरा कर यहां की व्यवस्थाओं की तारीफ की। यहां भी लम्पी का एक भी मामला नहीं पाए जाने पर उन्होंने खुशी जाहिर की। इस दौरान प्रबंध समिति के अध्यक्ष प्रमोद खंडेलिया,, सचिव नेमी अग्रवाल, कोषाध्यक्ष राजकुमार तुलस्यान, गणेश हलवाई चिड़ावावाला और डॉ. डीएन तुलस्यान ने जिला कलक्टर का स्वागत करते हुए जिले में जिला प्रशासन द्वारा लम्पी रोग से बचाव और उपचार के लिए किए जा रहे प्रयासों के लिए धन्यवाद दिया। इस दौरान पशुपालन विभाग के संयुक्त सचिव ड़ॉ. रामेश्वर सिंह, जिला जनसंपर्क अधिकारी हिमांशु सिहं, वरिष्ठ पशुचिकित्सा अधिकारी डॉ. अशोक ढाका, डॉ. मोतीलाल गिल समेत अधिकारीगण मौजूद रहे। इस दौरान जिला कलक्टर ने नंदी और गायों को गुड़ व हरा चारा भी अपने हाथों से खिलाया। 
जंगल में आवारा पशुओं को भी संभाला
जिला कलक्टर ने रविवार को पातुसरी, बड़ागांव की राज्य सरकार द्वारा अनुदानित गौशालाओं का निरीक्षण किया, साथ ही रामनिवास की बेरी में लघु स्तर पर चल रहे निजी पशुपालन केंद्रों का भी दौरा कर वहां हालातों की जानकारी ली। उन्होंने इस दौरान लम्पी से बचाव और उपचार के लिए जारी एडवाईजरी की पालना करने की भी बात कही। इस दौरान उन्होंने रास्त में जंगल में चर रहे आवारा पशुओं को भी संभाला और निरीक्षण किय़ा। उन्होंने पशुपालन विभाग की टीम को आवारा पशुओं की भी पूरी तरह देखभाल करने के निर्देश दिए, ताकि लम्पी रोग से बचाव किया जा सके। इस दौरान उन्होंने मौके पर आए ग्रामीणों को भी नियंत्रण कक्ष के बारे में बताया और कहा कि जिला प्रशासन पशुपालकों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा और किसी तरह का नुकसान पशुपालकों को नहीं होने देंगे। पशुपालन विभाग के संयुक्त निदेशक डॉ. रामेश्वर सिंह ने इस दौरान ग्रामीणों को अपने मोबाईल नंबर भी दिए और कहा कि किसी भी तरह की परेशानी आने पर वे किसी भी समय संपर्क कर सकते हैं। इसी दौरान पातुसरी में जिला कलक्टर की मौजूदगी में ही पशुओं का वैक्सीनेशन किया गया। 
लम्पी स्कीन डिज़ीज की रोकथाम के लिए जिले में नियंत्रण कक्ष स्थापित
लम्पी के लक्षण दिखने पर इन नंबर पर करें कॉल- 01592-232481:
जिला प्रशासन द्वारा जिला स्तरीय नियंत्रण कक्ष  उप निदेशक कार्यालय बहुउद्देशीय पशु चिकित्सालय झुन्झुनू में स्थापित किया गया हैं, इसके दूरभाष नम्बर 01592-232481 है। पशुपालन विभाग के संयुक्त निदेशक रामेश्वर सिंह ने बताया कि नियंत्रण कक्ष के प्रभारी अधिकारी डॉ. बंशीधर  वरिष्ठ पशु चिकित्सा अधिकारी, ब.उ. प. चि. झुन्झुनू होंगे। जिनके मोबाईल नम्बर 7878502302 हैं तथा डॉ. शिव रतन वरिष्ठ पशु चिकित्सा अधिकारी, प्रभारी जिला रोग निदान इकाई, झुन्झुनू के मोबाईल नम्बर 9414081273 पर संपर्क किया जा सकता है। नियंत्रण अधिकारी लम्पी स्कीन डिजीज से संबंधित सूचना नियंत्रण कक्ष पंजिका में इन्द्राज करेंगें ।
प्रदेश में वर्तमान में फैल रही लम्पी स्कीन डिजीज की रोकथाम के लिए विभिन्न जिलों में नियंत्रण कक्ष की स्थापना की गई है। इनके प्रभारी अधिकारियों से संपर्क कर ईलाज के लिए संपर्क किया जा सकता है। राज्य सरकार के पशुपालन विभाग द्वारा इसके लिए एडवाईजरी जारी की गई है:
गोपालकों व गौशालाओं द्वारा संधारित गौवंश में लम्पी स्कीन डिजीज की रोकथाम एवं बचाव हेतु एडवाजरी:
गौरतलब है कि वर्तमान में मवेशियों एवं अन्य पशुओं में लम्पी स्कीन रोग के प्रकरण सामने आये है। चूंकि यह एक विषाणु जनित रोग है। अतः इस रोग के ईलाज के लिए कोई दवा सुनिश्चित नहीं है। अतः रोकथाम एवं बचाव ही एकमात्र उपाय है जिससे कि इस रोग से होने वाली क्षति को न्यूनतम किया जा सके। गोपालकों व गौशालाओं में संधारित गौवंश मे इस रोग के रोकथाम एवं बचाव के लिए निदेशालय गोपालन द्वारा निम्न सुझाव प्रसारित किये जा रहे है जिससे गौवंश में होने वाल इस रोग पर नियंत्रण पाया जा सकता है।
रोग एवं लक्षण:
लम्पी स्कीन डिजीज एक विषाणु जनित, गौवंश तथा अन्य पशुओं में फैलने वाला संक्रामक रोग है। यह वेक्टर यानी मच्छरों, मक्खियों और चीचड आदि के द्वारा तथा पशुओं की लार, स्त्राव तथा संकमित जल एवं चारा के माध्यम से एक से दूसरे पशु में फैलता है। इस रोग के प्रमुख लक्षण है :
1. गौवंश के त्वचा पर गोलाकार गांठदार संरचनाओं का उभरना प्रायः देखा जाता है। यह गांठे सामान्यतः 2 से 5 सेमी व्यास की होती है जोकि सिर, गर्दन एवं जननांगों के आसपास देखी जा सकती है। यह गांठे धीरे-धीरे बडी होने लगती हैं। अंततः घाव में परिवर्तित हो जाती है।
2. तेज बुखार, आंख, नाक से लार का स्त्राव ।
 3. कभी-कभी छाती व पेट के पास सूजन देखी जाती है।
4. दूध का अचानक से कम हो जाना।
रोग की रोकथाम के उपाय:
1. गौवंश के अनावश्यक आवागमन पर पूर्णतः प्रतिबंध लगाना ।
2. गौशाला प्रबंधक अपने गौवंश को गौशालाओं में ही रखे, यदि रोग का प्रकोप क्षेत्र में है तो चरने के लिए गौवंश को गौशाला से बाहर न भेजे।
3. गौशालाओं में आने वाले नए गौवंश को पृथक बाडें में रखे, उन्हें गौशाला के अन्य स्वस्थ पशुओं के साथ कम से कम 15 दिवस तक सम्मलित नही करें।
4. गौशाला प्रबंधक व गोपालक गौवंश में रोग के प्रारंभिक लक्षण देखते ही तुरन्त पशु को अन्य गौवंश से अलग करे। रोगी गौवंश का समय पर पृथकीकरण करने से ही रोग के फैलाव को नियंत्रण किया जा सकता है।
5. रोग प्रभावित, गौवंशों के चारा-पानी एवं इनकी देखभाल करने वाले व्यक्ति को स्वस्थ गौवंश रखे जाने वाले क्षेत्र में भ्रमण की अनुमति न देवें
6. गौवंश की देखभाल करने वाले व्यक्ति लगातार अपने हाथ साबुन पानी से साफ करे अथवा सेनिटाइजर का उपयोग करे।
7. गौशाला परिसर व गौवंश के बाड़े की प्रतिदिन समुचित साफ-सफाई रखे। गंदगी व गड्डों में पानी आदि एकत्रित न होने दे। 
8. गौशाला परिसर में मच्छरों, मक्खियों और चीचड आदि के नियंत्रण के लिए मैलिथियोन/साईपरमैथ्रिन / डेल्टामैथिन / सोडियम हाईपोक्लोराईट आदि का छिडकाव प्रतिदिन करे ।
9. स्थानीय स्तर पर गौशाला संचालक गोवर के कण्डे आदि जलाकर भी गौशाला परिसर में मच्छरों, मक्खियों को कम कर सकते है। 
10. स्वस्थ गौवंश को संतुलित पशु आहार व हरा चारा समुचित मात्रा में उपलब्ध कराये ताकि उसकी सामान्य रोग प्रतिरोधक क्षमता बनी रहे।
रोग का उपचार व टीकाकरण:
1. रोग के प्रारंभिक लक्षण दिखते ही स्थानीय पशु चिकित्सा केन्द्र पर सूचित कर पशु चिकित्साधिकारी के निर्देशन में रोगी पशु की चिकित्सा एवं रोग के प्रबंधन की व्यवस्था सुनिश्चित करे।
2. यद्यपि इस रोग का वर्तमान में टीका उपलब्ध नही है फिर भी पशुपालन, मत्स्य एवं डेयरी मंत्रालय,
भारत सरकार के द्वारा अनुशंपित गॉट पॉक्स का टीका स्वस्थ गौवंश को रोग के बचाव हेतु लगवाया जा सकता है। 
3. यदि किसी गांव में इस रोग से प्रभावित गौवंश देखे जाते है तो उस गांव के 03 से 05 किमी के क्षेत्र के अंदर संधारित समस्त मवेशियों में बाहर से अन्दर की ओर रिंग वैक्सीनेशन करवाया जाना चाहिए ।
4. प्रभावित गौवंश की लक्षण के अनुरूप चिकित्सा करने तथा अन्य संक्रमण के होने से बचाव किया जाना चाहिए। शरीर पर हुई गाठों की नियमित एन्टीसेप्टिक ड्रेसिंग करना आवश्यकतानुसार 5-7 दिन एन्टीबॉयोटिक व मल्टीविटामिन तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाने वाली औषधि दी जानी चाहिए।
5. प्रभावित गौवंश पर मच्छरों, मक्खियों और चीथड़ आदि के नियंत्रण के लिए फ्लाई रिपलेन्ट ( विकर्षक) स्प्रे अथवा मलहम का नियमित उपयोग किया जाना चाहिए।
मृत गौवंश का निस्तारण:
1. गौशाला परिसर तथा क्षेत्र में रोग से प्रभावित होकर मृत गौवंश का समुचित निस्तारण किया जाना आवश्यक है ताकि रोग का फैलाव रोका जा सकें।
2. संक्रामक रोग से मृत गौवंश एवं इससे संबंधित वस्तुओं को गांव के बाहर एवं किसी भी जलस्त्रोत से है । दूर लगभग 1.5 मी. गहरे गढ्डे में चूने या नमक के साथ वैज्ञानिक विधि से दफनाया जा सकता है।
3. मृत गौवंश के संपर्क में रही वस्तुओं एवं स्थान को फिनाइल या लाल दवा अथवा सोडियमहाईपोक्लोराईट आदि से कीटाणु रहित करें। 
4. रोग प्रकोप की स्थिति में स्थानीय प्रशासन एवं संबंधित विभागों का सहायोग लिया जा कर उचित प्रबंधन सुनिश्चित किया जावे।