परिवारवाले बोले, क्यों टाइम खराब कर रहा है, पढ ले लेकिन 14 साल के डूंडलोद पब्लिक स्कूल में पढने वाले छात्र मेहुल की जिद ने पाया मुकाम, 14 साल के मेहुल ने बनाई दिव्यांगों के लिए बैशाखी, इंस्पायर अवार्ड में सर्वश्रेष्ठ 60 आइडिया में हुआ चयन

झुंझुनूं।
यदि आपका बच्चा किसी की हेल्प के लिए या फिर समाज को नई सुविधा देने के लिए घर की खराब चीजों को जोड़ तोड़ कर कुछ बना रहा हो या फिर कुछ बनाने की सोच रहा हो तो उसे आप सहयोग करिए। क्योंकि आज हम आपको ऐसे ही एक 14 साल के बच्चे के आइडिया को बताने जा रहा है। जिसने 12 साल की उम्र में कुछ बनाने की सोची, परिवारवालों ने इसे टाइम वेस्ट बताया। लेकिन बच्चे की जिद से आज परिवार के लोग गौरवान्वित है। जी, हां झुंझुनूं के मेहुलसिंह का चयन उन 60 बाल वैज्ञानिकों में हुआ है। जो आने वाले दिनों में राष्ट्रपति भवन में अपने आइडिया का प्रदर्शन करेंगे। जिनका अवलोकन खुद राष्ट्रपति और केंद्रीय विज्ञान व प्रोद्योगिकी मंत्री कर इन बाल वैज्ञानिकों की पीठ थपथपाएंगे।
रेलवे स्टेशन के पास राजपूत कॉलोनी और मूल रूप से काली पहाड़ी के रहने वाले मेहुलसिंह जब 12 साल की उम्र के थे। तब से उन्होंने क्रच विद एंब्रेला बनाने की सोची और आज उनके इस आइडिया को देश के बेहतरीन 60 आइडियाज में जगह मिली है। जी, हां मेहुलसिंह ने एक ऐसी बैशाखी तैयार की है। जिसमें दिव्यांग व्यक्ति ना केवल छाता तानकर खुद को धूप और बारिश से बचा सकता है। बल्कि वह रात के समय में लाइट, कोहरे के समय में फॉग लाइट, रास्ता पार करते समय हॉर्न, मोबाइल चार्ज करने के लिए पावर बैंक और मोबाइल रखने के लिए स्टैंड के साथ—साथ यदि थक गया हो तो चेयर का भी इस्तेमाल कर सकता है। एक बैशाखी में वो सबकुछ है। जो दिव्यांग को हर हालातों में साथ देने के लिए होती है। वहीं जो चीज नहीं चाहिए। उसे वह बैशाखी से हटाकर अपनी बैशाखी का बोझ भी कम कर सकता है।
12 साल की उम्र में देखी थी पीड़ा, तभी ठाना
झुंझुनूं शहर की डूंडलोद पब्लिक स्कूल के छात्र मेहुलसिंह अब 10वीं कक्षा में है। लेकिन जब वे आठवीं कक्षा में थे और उनकी उम्र भी महज 12 साल की थी। तब उनके दिमाग में यह आइडिया आया। मेहुलसिंह ने बताया कि दरअसल वह अपने पापा के साथ जॉगिंग के लिए जाते थे। एक दिन बारिश आ रही थी तो वे पास ही रेलवे स्टेशन पर रूक गए और बैठ गए। इसी दरमियान उन्होंने देखा कि एक दिव्यांग व्यक्ति बारिश में भीगता हुआ पटरियां पार कर रहा था। दरअसल इस दिव्यांग के दोनों हाथों में बैशाखी थी। तब मेहुल ने सोचा कि क्यों ना ऐसा कुछ किया जाए। ताकि दिव्यांग भीगे नहीं। जब आकर इसके बारे में परिवार के लोगों को बताया तो सभी ने कहा कि क्यों टाइम वेस्ट कर रहा है। पढाई पर ध्यान दें। अच्छे परसेंटेज लाने है। लेकिन उसकी जिद के आगे परिवार वालों ने हार मान ली और फिर मेहुल का साथ दिया।
धीरे—धीरे किया मॉडीफाई, अभी और भी गुंजाइश
मेहुलसिंह ने बताया कि सबसे पहले उसने बैशाखी में छाता लगाने की ही सोची थी। पहला मॉडल तैयार किया तो उसने छाता लगाया और इंस्पायर अवार्ड के जिला स्तरीय कार्यक्रम में शामिल हुआ। वहां पर इस मॉडल का सलेक्शन राज्य स्तर पर हुआ। जहां पर उसने इस छाते को और अधिक मॉडीफाई किया और इसमें टॉर्च और हाथों से बजाने वाली घंटी लगाई। लेकिन फिर सोचा कि हाथों से घंटी बचाने में वक्त लगता है। इस वक्त को कम करने के लिए उसने राज्य स्तरीय प्रदर्शनी तक बैशाखी में हॉर्न भी लगा दिया और बैटरी चार्ज ना होने की सूरत में विकल्प के रूप में घंटी भी साथ रखी। इसके अलावा नेशनल के लिए उसने इस बैशाखी को और मॉडीफाई करते हुए मोबाइल स्टैंड, फॉग लाइट और चेयर को भी लगा दी। अभी भी मेहुल का आइडिया थमा नहीं है। वह इसमें एक बैग भी लगाने वाला है। जिससे कोई सामान लाने—ले जाने में दिव्यांगों को परेशानी नहीं हो।
अब है घरवालों भी फक्र
मेहुल के पिता बलबीरसिंह तथा मां मंजू कंवर ने बताया कि जब उसने पहले बताया तो हमने यही कहा था कि क्यों टाइम खराब कर रहा है। पढाई कर लें। ताकि अच्छे नंबर आ जाए। लेकिन जब जिद की तो फिर घरवालों ने सहयोग किया। यही नहीं मेहुल की मां ने बताया कि बचपन से मेहुल की कारीगरी से घरवाले परेशान थे। वह कोई भी पुरानी चीज मिलती। उसमें कारीगरी करना शुरू हो जाता। उसे खोल—खाल कर पटक देता था। लेकिन आज लगता है कि वो जो करता था। वो सही था।
स्कूल प्रिंसीपल और शिक्षा विभाग भी गौरवान्वित
इधर, मेहुल की उपलब्धि पर स्कूल और शिक्षा विभाग में खुशी देखने को मिल रही है। डूंडलोद पब्लिक स्कूल के प्रिंसीपल सतवीरसिंह ने बताया कि आठवीं कक्षा के छात्र मेहुल ने जब अपने आइडिया को बताया और इंस्पायर अवार्ड में जाने की इच्छा जताई। तो उसकी मेंटर और बहन अंकिता शेखावत के साथ पूरे स्टाफ ने सहयोग दिया। हमें खुशी है कि मेहुल की उपलब्धि से आज झुंझुनूं को राष्ट्रीय स्तर पर गौरव मिला है। वहीं इंस्पायर अवार्ड मानक योजना के तत्कालीन प्रभारी अधिकारी कमलेश तेतरवाल ने बताया कि इस सत्र में करीब पूरे देश से 5 लाख से अधिक आइडिया पूरे देश से आए थे। जिनका चयन जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर होने के बाद अब 60 आइडियाज का चयन हुआ है। इनमें से भी झुंझुनूं के मेहुलसिंह के अलावा एक आइडिया सीकर और एक आइडिया हनुमानगढ़ के बाल वैज्ञानिक का शामिल है। जो राजस्थान के लिए गौरव की बात है।
बूढे दादा—दादी ने खिलाई धोनी को मिठाई
मेहुल की उपलब्धि पर परिवार में खुशी का माहौल है। घर में धोनी के नाम से पुकारे जाने वाले मेहुल को उसके दादा नानगसिंह और दादी शांतिदेवी ने मिठाई खिलाई। पोतियों ने जब दादा नानगसिंह को धोनी की उपलब्धि बताई तो वे भी मुस्कुरा उठे और उसके सिर पर हाथ फेरा। आपको बता दें कि अब इन 60 वैज्ञानिकों को जल्द ही राष्ट्रपति भवन से न्यौता मिलेगा। जिसमें ये वैज्ञानिक अपने आइडियाज को राष्ट्रपति और केंद्रीय विज्ञान प्रोद्योगिकी मंत्री के सामने प्रदर्शित करेंगे। इनमें से चुनिंदा बाल वैज्ञानिकों का सकूरा प्रोग्राम के तहत भी चयन होगा। जिसके बाद इन्हें वैज्ञानिक शैक्षिक व सांस्कृतिक आदान प्रदान के लिए जापान भेजा जाएगा। इसके अलावा इन्हें सरकार द्वारा अपने आइडियाज को और अधिक डवलप करने के लिए एक लाख रूपए तक की सहयोग राशि दी जाएगी।
स्कूल प्रिंसीपल, सचिव ने भी दी बधाई
मेहुल की उपलब्धि पर डूंडलोद पब्लिक स्कूल झुंझुनूं के प्राचार्य डॉ. सतबीरसिंह ने बधाई दी है। उन्होंने कहा कि यह गर्व की बात है कि देश के हर हिस्से से लाखों दिए गए नवाचारों में से स्कूल के बाल वैज्ञानिक का चयन हुआ है। पूरे राजस्थान की बात करें तो सिर्फ तीन विद्यार्थियों के मॉडल्स का चयन हुआ है। यह इस बात को प्रलिक्षित करता है कि स्कूल में दी जाने वाली शिक्षा वैज्ञानिक सोच पर आधारित है। चयन उपरांत विद्यार्थी को महामहिम राष्ट्रपति प्रशस्ति पत्र एवं अन्य पुरस्कार से सम्मानित करेंगे तथा मेहुल सिंह को जापान जाने का अवसर मिलेगा। जहां उसकी वैज्ञानिक सोच को नए पंख लगेंगे। इस उपलक्ष्य में विद्यार्थी को स्कूल में डीएसएस सचिव बीएल रणवां द्वारा सम्मानित किया गया तथा उसके उज्ज्वल भविष्य की कामना की गई। इस अवसर पर एसएमसी मेंबर सुभाष, ऑवरऑल इंचार्ज लीलावती, मेहुलसिंह के मॉडल प्रभारी भौतिकी व्याख्याता संजय शर्मा, अंकिता शेखावत, बलबीरसिंह एवं अन्य अध्यापक मौजूद थे।