कोरोना संकट के बावजूद देश में नहीं रुका 'शारंग' तोपों का निर्माण, जानें क्या है खासियत

कोरोना संकट के बावजूद देश में नहीं रुका 'शारंग' तोपों का निर्माण, जानें क्या है खासियत

नई दिल्ली। 

कोरोना महामारी की वजह से फ्रंट लाइन वर्कर को छोड़ कर अधिकांश लोग अपने-अपने घरों में हैं। लेकिन कई ऐसे लोग भी हैं, जो कोरोना कहर के बावजूद देश की सेना के हाथ मजबूत करने के लिए दिन-रात एक किए हुए हैं और जब बात देश की सुरक्षा से जुड़ी हो, तो कोई समझौता नहीं हो सकता, इस भाव और जज्बे के साथ काम करते हुए, इन दिनों मध्‍य प्रदेश के जबलपुर में शारंग तोपें तैयार हो रही हैं। 2022 तक 300 शारंग तोप का निर्माण कर सेना को दिया जाना है। 
 
 
अपग्रेड के बाद तोप की बढ़ी मारक क्षमता
 
दरअसल, सबसे ताकतवर आर्टिलरी गन शांरंग के सफल परीक्षण के बाद से भारतीय सेना की फायर पावर और मजबूत हुई है, भारत अब पड़ोसी दुश्मन देश के अंदर तक मार कर सकेगा। अपग्रेड होने के बाद इस तोप की मारक क्षमता 40 से 50 किलोमीटर हो गई है। मारक क्षमता बढ़ने के साथ ही ये तोप पीओके में अपना निर्णायक रोल अदा करने में भी सक्षम हो गई हैं। 
 
 
कोरोना काल में तेजी से हो रहा शारंग का निर्माण 
 
यह सच है कि कोरोना ने इसके निर्माण की गति को प्रभावित किया, किंतु सेना और हमारे वैज्ञानिकों के इरादे शुरू से ही मजबूत बने रहे। कोरोना का संक्रमण उनके मजबूत इरादों को जरा भी नहीं हिला सका है। यही कारण है कि 'शारंग' का निर्माण तेजी के साथ जारी है। वीएफजे सहित चारों आयुध निर्माण फैक्ट्रियां 25 फीसदी कर्मचारियों के साथ फिलहाल काम कर रही हैं। कुल यहां तीन हजार कर्मचारी कार्यरत हैं। 
 
 
इस साल 100 शारंग तोपों का निर्माण करना है पूरा
 
जबलपुर की व्हीकल फैक्ट्री (वीएफजे) मूलत: सेना के वाहनों का निर्माण कार्य करती है। इन वाहनों में स्टालियन और एलपीटीए जैसे शक्‍तिशाली सेन्‍य वाहन भी शामिल हैं। सेना के लिए वाहन बनाने वाली इस व्हीकल फैक्ट्री ने पहली बार तोप के उत्पादन में कदम रखा है।  इस तोप के लिए वीएफजे ही नोडल केंद्र है। उसे बड़ी कामयाबी मिल रही है। वीएफजे इस साल 100 शारंग तोपों का निर्माण पूरा करेगी। यह ऑर्डर उसे आयुध निर्माण बोर्ड से मिला है, जिसकी लागत 966 करोड़ रुपए बताई गई है। वीएफजे को 11 महीनों में इस बड़े आर्डर को पूरा करना है। 
 
पिछले साल वीएफजे ने 450 करोड़ का काम पूरा किया था, हालांकि ऑर्डर एक हजार करोड़ का था, किंतु कोरोना संकट के बीच काम प्रभावित जरूर हुआ, लेकिन रुका नहीं। इस साल कोरोना की दूसरी लहर पहले के मुकाबले अधि‍क शक्‍तिशाली थी, कई लोग इससे प्रभावित भी हुए, फिर भी जबलपुर की व्हीकल फैक्ट्री के जवान एवं तकनीकि वैज्ञानिक अपने काम में लगे रहे। देश ही सर्वोपरि है, इस भाव से लगे रहने का ही यह परिणाम है कि इस बार कोरोना संकट की वजह से काम प्रभावित होने के बाद भी प्रबंधन ने इस लक्ष्य को पूरा करने की योजना तैयार कर उसको अमल में लाना चालू रखा है।
 
 
ऑर्डर पूरा करने के लिए दो कंपनियां और कर रही निर्माण
 
इस संबंध में जबलपुर की व्हीकल फैक्ट्री (वीएफजे) के जनसंपर्क अधिकारी राजीव कुमार कहते हैं कि हमने वर्ष भर में 100 शारंग तोप बनाने का लक्ष्य लिया है। आयुध निर्माण बोर्ड से जो ऑर्डर इससे जुड़ा प्राप्‍त हुआ है वह भी लगभग इतनी ही तोपें तैयार कर समय पर सौंप देने का है। इसलिए इस ऑर्डर को पूरा करने के लिए इस कोरोना संक्रमण के काल में भी कोविड नियमों का पालन करते हुए हर हाल में पूरा करने के हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं। इतना ही नहीं हमारी जो पूर्व से वाहन निर्माण की विशेषता रही है, उस पर भी हमारा बराबर से ध्‍यान है। जबलपुर की व्हीकल फैक्ट्री स्टालियन और एलपीटीए सैन्य वाहन भी अपने तय लक्ष्‍य के अनुसार तैयार करने में जुटी है। 
 
 
स्वदेशी तकनीक से लैस है 'शारंग'
 
'शारंग' पूर्ण रूप से आर्टिलरी गन है। यह देश की सबसे बड़ी स्वदेशी तोप है। 155 एम.एम. कैलिबर वाली इस गन को अपग्रेड कर इसकी मारक क्षमता को बढ़ाया गया है।  मेक इन इंडिया के संकल्प को साकार करती हुई यह गन स्वदेशी में सबसे आधुनिक तकनीक से युक्त कही जा सकती है। यह भी कह सकते हैं कि इस तोप को 130 एमएम की एम-46 की तकनीक अपग्रेड करके बनाया जा सका है। अपग्रेड होने के बाद ये और भी खतरनाक हो गई है। रक्षा जानकारों के मुताबिक शारंग के गोले में 8 किलो टीएनटी का प्रयोग किया जा रहा है, जिसकी वजह से दुश्मन के खेमे में ये और अधिक तबाही मचा देने में सक्षम हो गई है । 
 
इस तोप को विभिन्न मानकों पर भी परखा जा चुका है। इसे 0 से 45 डिग्री तापमान तक मौसम की स्थितियों में परखा गया है। इस प्रोजेक्ट को सेना के साथ डायरेक्टर जनरल ऑफ क्वालिटी एश्योरेंस (डीजीक्यूए), डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (डीआरडीओ) और ऑर्डनेंस फैक्ट्री बोर्ड (ओएफबी) ने मिलकर पूरा किया है।
 
 
 
भगवान विष्‍णु के धनुष के नाम पर है ‘शांरग’

इसका नाम भगवान विष्णु के धनुष शारंग के नाम पर रखा गया है। शारंग तोप एक बार में तीन गोले दाग सकती है। शारंग तोप का वजन करीब 8.4 टन है और उसके बैरल की लंबाई करीब सात मीटर है। यह गन भी अब सेमी ऑटोमेटिक हो गई है। इससे अब तोप के अंदर गोले डालना भी आसान हो गया है। 
 
शारंग तोप को करीब 70 डिग्री तक घुमाया जा सकता है। हालांकि अभी तक 45 डिग्री तक फायरिंग की गई है। एक तोप बनाने के लिए 70 लाख रुपये की लागत आती है। एक नई फील्ड आर्टिलरी गन का दाम करीब 3.5 करोड़ रुपये है। इस तरह से शारंग घातक होने के साथ-साथ सस्ती भी है।
 
 
रूस से किया गया था आयात
 
 
गौरतलब हो कि मूल रूप से 'शारंग' का निर्माण रूस में हुआ था।  इसकी पहले मारक क्षमता 27 किलोमीटर हुआ करती थी और इसका बैरल पहले 130 एम.एम का था लेकिन अब इसमें 25 एम.एम की बढ़ोतरी की गई, जिसके बाद अब यह 155 एम.एम बैरल की हो गई है। इसमें भारतीय वैज्ञानिकों ने नए सिरे से परिवर्तन किए हैं। जिसके बाद कहा जा सकता है कि शारंग का आज जो स्वरूप है, वह पूरी तरह से भारतीय है। इसके लिए हमें किसी अन्‍य देश पर निर्भर होने की जरूरत नहीं रही ।