जानें, कैसे एक MSME कंपनी सेवा के लिए आई आगे और बन गई दिल से बड़ी

जानें, कैसे एक MSME कंपनी सेवा के लिए आई आगे और बन गई दिल से बड़ी

जब इच्‍छा नेक हो और आप किसी कार्य को सेवा से जोड़कर करते हैं, तो राह अपने आप भी बनती चली जाती है। देश भर में कोरोना संकट के बाद जिस तरह से ब्लैक, व्हाइट और येलो फंगस की बीमारी का हाहाकार मच गया, तब अनेक प्रयास शुरू हुए कि कैसे इस बीमारी से निजात पाई जा सकती है। महंगी दवाओं एवं इंजेक्शन को किस तरह कम कीमत पर उपलब्ध कराकर लोगों तक राहत पहुंचाई जा सकती है। दरअसल, इन तमाम प्रयासों में से एक प्रयास सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) के अंतर्गत काम करनेवाली एक मेडिकल फार्मा कंपनी का सामने आया है, जिसने बहुत कम कीमत पर इस बीमारी के इलाज में आवश्यक रूप से लगाए जाने वाले इंजेक्शन को उसकी मूल कीमत से चार गुना से अधिक सस्ती दरों पर उपलब्ध करा दिया है। 

पीएम मोदी की आत्मनिर्भर भारत की सोच का सफल उदाहरण है ये  

देखा जाए तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आत्मनिर्भर भारत की सोच का भी यह एक सफल उदाहरण है, जिसमें कि एक ओर बड़ी बड़ी कंपनियां अपनी दवाओं को सस्ता कर बेचने में लागत की कठिनाइयां बता रही हैं, वहीं दूसरी ओर सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) से जुड़ी छोटी कंपनियां हैं जो आज हर मोर्चे पर आत्मनिर्भर भारत बनाने के लिए बढ़ चढ़कर आगे आ रही हैं। यह भी संयोग ही है कि आज 27 जून को विश्व एमएसएमई दिवस है और इस छोटी सी कंपनी ''मॉडर्न लैबोरेट्री '' की बात जिसने ब्‍लेक फंगस के इलाज के लिए सस्‍ता इंजेक्शन मार्केट में उतारा है, उसके विषय में यहां बात की जा रही है। 

मॉडर्न लैबोरेट्री ने 'सेवा के संकल्प' को किया है धारण 

मॉडर्न ग्रुप के प्रेसिडेंट अरुण खरया इस उपलब्धि को लेकर बताते हैं कि वर्तमान महामारी काल में कच्चे माल की उपलब्धता एक बड़ी चुनौती है, लेकिन मॉडर्न लैबोरेट्री ने 'सेवा के संकल्प' को धारण कर अपने भगीरथ प्रयासों से कच्चे माल की उपलब्धता को कम समय में सुनिश्चित कर अब उत्पादन करना शुरू कर लिया है, जो कि मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों को आसानी से मुहैया कराया जाने लगा है। इसके बाद कहना होगा कि राज्‍य में आवश्‍यक ब्लैक फंगस, व्हाइट फंगस और येलो फंगस के इंजेक्शन के लिए लोगों को अब भटकना नहीं पड़ेगा। उन्होंने बताया, कैसे यह विचार आया कि हमें सस्‍ती दरों पर इंजेक्शन बाजार में लाना है। वे कहते हैं कि इस दवा के लिए अंतरराष्ट्रीय आपूर्तिकर्ताओं से पहले ही हमारे संस्थान द्वारा समुचित अनुबंध कर लिए गए थे, जिसके बाद बीते दो सप्ताह से कच्चे माल की आपूर्ति की जा रही थी। टेस्टिंग (ट्रायल) भी सफलता से पूरा हुआ। अत: हमने युद्ध स्तर पर उत्पादन प्रारंभ कर दिया है और अब प्रोडक्ट मार्केट में है।

बहुत ही कम कीमत पर उपलब्ध कराया गया है इंजेक्शन 

डॉ. खरया कहते हैं कि एम्फोटेरिसिन-बी (एम्फोकेयर) इंजेक्शन का इमल्शन फॉर्म कन्वेंशनल फॉर्म से कम नेफ्रोटॉक्सिक होता है। 'मॉडर्न लैबोरेट्रीज' द्वारा एम्फोटेरिसिन-बी इमल्शन इंजेक्शन ओपन मार्केट में अन्य की तुलना में आधे से बहुत कम मूल्य पर उपलब्ध कराया गया है, जो कि एम्फोटेरिसिन-बी (इमल्शन इंजेक्शन) एम्फोकेयर नाम से उक्त ब्रांड बाजार को उपलब्ध कराया गया है। उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश के साथ ही देश के कोने-कोने तक एम्फोटेरेसिन-बी की उपलब्धता को सुनिश्चित करने का संकल्प मॉडर्न लैबोरेट्रीज ने ले लिया है, जिसके लिए गुणवत्तापूर्ण प्रोडक्शन पर रात-दिन कार्य चल रहा है। वास्तव में यह एक बहुत बड़ी राहत की खबर है, क्योंकि जो फंगस के इलाज के लिए पहले इंजेक्‍शन सात से आठ हजार रुपए कीमत में आ रहा था, वह अब संक्रमितों को शासन स्तर से सिर्फ एक हजार आठ सौ रुपए में ही उपलब्ध हो रहा है। जबकि इसकी मार्केट कीमत 3,200 रुपए रखी गई है। 

पीएम मोदी व मुख्यमंत्री शिवराज के बीमारियों से मुक्त समाज के अभियान में लगी है कंपनी 

वे बताते हैं कि देश की गिनी चुनी प्रोपोफॉल (एनेस्थिटिक इंजेक्शन) की निर्माता कंपनियों में से एक इंदौर की मॉडर्न लैबोरेट्रीज है। आज कंपनी कोरोना महामारी के इस संकट काल में भी कोरोना आदि की दवाएं युद्ध स्तर पर मध्य प्रदेश के साथ अन्य प्रदेशों की सरकारों को भी उपलब्ध करा रही है। इसके साथ ही कंपनी के चेयरमैन डॉ.अनिल खरया का कहना यह भी है ''देश में तेजी से बढ़ रहे ब्लैक फंगस बीमारी के निवारण के लिए एवं प्रधानमंत्री मोदी व मध्य प्रदेश की जनता की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कोरोना मुक्ति एवं ब्लैक फंगस आदि बीमारियों से सभी ओर के मुक्त अभियान में मॉडर्न लैबोरेटरीज कदम से कदम मिलाकर चल रही है''

इस इंजेक्शन का डोज पूरा करना है जरूरी 

मॉडर्न ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशन्स के समूह निदेशक डॉ. पुनीत द्विवेदी का यहां कहना है कि ब्लैक फंगस के इलाज में लिपोसोमल एम्फोटेरिसिन-बी इंजेक्शन और एम्फोटेरिसिन-बी प्लेन इंजेक्शन का प्रयोग किया जाता है। एम्फोटेरिसिन-बी (एम्फोकेयर) इंजेक्शन के साइड इफेक्ट कम होने के चलते इसका इस्तेमाल अधिक किया जाता है। मरीज को पूरी तरह से स्वस्थ होने में 25 दिन लगते हैं। इस दौरान उसको प्रतिदिन इस इंजेक्शन का एक ही डोज काफी होता है। उन्होंने बताया संक्रमण को बढ़ने से रोकने और फंगस को समाप्त करने में इंजेक्शन का बड़ा अहम रोल है। अगर इंजेक्शन की पर्याप्त डोज नहीं मिलती तो संक्रमण के फिर से बढ़ने की संभावना बनी रहती है। रिकवरी का समय भी बढ़ जाता है। खासकर ऑपरेशन के बाद भी मरीज का यह संक्रमण जाने में बहुत कठिनाई आती है, दोबारा संक्रमण फैलने से मरीज की जान पर खतरा बना रहता है, इसलिए इंजेक्‍शन के सभी डोज पूरे होना जरूरी है। कुल मिलाकर इंजेक्शन के कोर्स पर ही मरीज की रिकवरी निर्भर करती है।

एमएसएमई क्या है?

एमएसएमई भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। एमएसएमई का मतलब सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम है। ये देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में लगभग 29 फीसदी का योगदान करते हैं। एमएसएमई सेक्टर देश में रोजगार का सबसे बड़ा जरिया है। एमएसएमई दो प्रकार के होते हैं।  

1) मैन्युफैक्चरिंग उद्यम (उत्पादन करने वाली इकाई)
2) सर्विस एमएसएमई इकाई (यह मुख्य रूप से सेवा देने का काम करती हैं)

सरकार ने एमएसएमई की परिभाषा बदली है। नए बदलाव के निम्न श्रेणी के उद्यम सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग में आएंगे।

सूक्ष्म उद्योग: सूक्ष्म उद्योग के अंतर्गत रखा अब वह उद्यम आते हैं, जिनमें एक करोड़ रुपये का निवेश (मशीनरी वगैरह में) और टर्नओवर 5 करोड़ तक हो।  यहां निवेश से मतलब यह है कि कंपनी ने मशीनरी वगैरह में कितना निवेश किया है। यह मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस सेक्टर दोनों क्षेत्र के उद्यमों पर लागू होता है।  

लघु उद्योग: उन उद्योगों को लघु उद्योग की श्रेणी में रखते है, जिन उद्योगों में निवेश 10 करोड़ और टर्नओवर 50 करोड़ रुपये तक है। यह निवेश और टर्नओवर की सीमा मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस दोनों सेक्टर में लागू होती है।

मध्यम उद्योग: मैनुफैक्चरिंग और सर्विस सेक्टर के ऐसे उद्योग जिनमें 50 करोड़ का निवेश और 250 करोड़ टर्नओवर है वह मध्मम उद्योग में आते हैं। 1 जून 2020 को हुई कैबिनेट बैठक में सरकार ने उद्यमियों की मांग को पूरा करते हुए यह बदलाव किया था। अब मैनुफैक्चरिंग और सर्विस सेक्टर के ऐसे उद्योग जिनमें 50 करोड़ का निवेश (मशीन और यूनिट लगाने का खर्च आदि) और 250 करोड़ टर्नओवर है वह मध्मम उद्योग में आते हैं।